कवि सम्मलेन पार्ट III
हा हा हा !!! हास्य को हास्य में लीजिये , घटना के सभी पात्र काल्पनिक हैं ?
कवि सम्मलेन का आँखों देखा हँसमुखी हाल :- पार्ट III ...
एक कवि सम्मेलन में हूटिंग करने वाले ऐसे श्रोता मिल गए
जिनकी कृपा से कवियों के कलेजे हिल गए
कल के आगे का वृतांत :- अबकी बार- अबकी बार
एक आशुकवि को जबरन उठाया गया-
उसने कहा-" मेरे प्रिय श्रोताओं , आपने हमें फेसबुक और व्हाट्सएप पर भी पढ़ा है !
आवाज़ आई-" जी हाँ , आपकी बकवास का सारा दोष आपकी पत्नी के सर मढ़ा है !
कवि बोला-" सास के सर मढ़ देते , पत्नी पर तो कविता लिख कर लाये थे !
आवाज़ आई :- इस उमर में तो पत्नी पर लिखना छोड़ देते ?
किसी ने पूछा-" ये बताइए ? "आप "को किसने भेजा है ?"
कवि बोले - "आप" के संयोजक ने बुलाया है , सारे " आपिये " हमारे यहाँ ही पकते हैं ।"
उत्तर मिला-" एक बार ही मूरख बन पाए हैं , इसलिए , सेंडिल पहनो और निकल लो ।"
कवि हाज़िर जवाब था , दूध की बोतल में शराब था ,
बोला - "कविता" को ही सुनना था तो हमें क्यूँ बुलाया ?
हंसमुखी को उठा लेते जिसने आपको दिन रात पकाया ?
अब , हंसमुखी जी ने माइक पर आते ही " टंच " श्रोताओं पर
गिद्ध दृष्टी घुमाई और ली एक अंगडाई , फिर तान फंसाई !
एक श्रोता बोला-"वाह ,गला है कि तबेला है।"
दूसरा बोला-कुछ भी कहो लगता अलबेला है।"
तीसरे ने कहा-"वाकई रफ़ी की आवाज़ में गाता है।"
चौथा बोला- "लेकिन सिर्फ महिलाओं को सुनाता है।"
कवि ने अपना यू - टर्न लिया -
" तुम्हारे रूप का रसगुल्ला मेरे मन की चाशनी में समा गया ।"
आवाज़ आई-"गीत पढ़ रहे हो या हलवाई की कलछी चला रहे हो।"
कवि बैठते हुए बोला-"ऐसा रिसपाँस मिलेगा तो पकौड़े ही तलने पड़ेंगे ।"
अगर फेसबुक पर " आप " को पकाते तो दो चार- चार कमेंट्स ही आ जाते !
क्रमशः ..... कल आखिरी किश्त में व्यंग कवि से मिलिएगा ? हा हा हा !
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें