कवी सम्मलेन पार्ट II


हा हा हा !!! हास्य को हास्य में लीजिये , घटना के सभी पात्र काल्पनिक हैं ?
कवि सम्मलेन का आँखों देखा हँसमुखी हाल :- पार्ट II
एक कवि सम्मेलन में हूटिंग करने वाले ऐसे श्रोता मिल गए
जिनकी कृपा से कवियों के कलेजे हिल गए
कल के आगे का वृतांत :- 
संयोजक ने संचालक से कहा-
" भले ही कविता मत सुनवाओ 
पर जिसके पास गला है ,
उसको बुलवाओ।"
गले वाला कवि मुस्कुराया ,
और जैसे ही उसने अपना नमूना दिखाया-
चटक म्हारा चम्पा आई रे रूत थारी
आगे वाला  श्रोता चिल्लाया-
"किस लोक गीत से मारी।"
कवि बोला-"हमारी है हमारी
विश्वास ना हो तो संचालक से पूछ लो।"
संचालक बोला-"भाई , गाओ या मत गाओ ,
मैं झूठ नहीं बोलता और ,
गवाही मुझसे मत दिलवाओ।"
संचालक ने दूसरे कवि से कहा-
" निहालजी आप ही आइए
ये श्रोता रूपी दुस्साशन 
कविता को नंगा कर रहे हैं
लाज बचाइए।"
निहालजी जैसे ही शुरू हुए-
"तू ही साक़ी
तू ही बोतल
तू ही पैमाना"
आगे वाला फिर चिल्लाया -"गुरू !
ये कविसम्मेलन है या मैख़ाना।"
कवि बोला-"मैं खानदानी कवि हूँ ,
मुझसे मत टकराना "
आवाज़ आई-"क्या आप के बाप-दादा  भी कवि थे।"
कवि बोला-"जी हाँ, थे
मगर आप ये क्यों पूछ रहे हैं।"
उत्तर मिला-"हम आपकी बेवक़ूफ़ी की असली जड़ को ढूंढ रहे हैं।"
क्रमशः  .........कल एक आशुकवि को उठाएंगे और पकाएंगे ??

शुभ रात्रि !!!

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