गब्बर का इनाम
शोले में अगर होली की जगह दिवाली होती तो हंसमुखी डॉयलॉग कुछ ऐसे होते.....
गब्बर: अरे ओ सांभा, दिवाली कब है रे ?
सांभा: बस 4 दिन बाद है सरकार और अभी तक अपनी छुपने की गुफा में पुताई तक नहीं हुई है।
गब्बर: पकड़ लाओ साले ठाकुर को और करवाओ उससे कोने-कोने की पुताई।
सांभा: सरकार उसके तो हाथ ही नहीं है, वो ब्रश कैसे पकड़ेगा।
गब्बर: अरे हां काश , मैंने उसके हाथ नहीं काटे होते तो साला पुताई करने के काम तो आता। जाओ
जय और वीरू को ले आओ।
सांभा: सरकार वो लोग तो आजकल रामगढ़ में पटाखे के साथ लौटाए हुए " इनाम फ्री" में बेच रहे हैं ?
गब्बर: खामोश..हरामखोर..हमारे पास इतने पटाखे हैं और हमें छोडक़र लोग उनसे पटाखे खरीद रहे हैं ।
सांभा: सरकार-आप कहें तो कल ही रामगढ़ में अपने पटाखों की दुकान लगा दें। आप पर भी तो इनाम रखा है सरकार ने वो भी वापस कर दो लगे हाथ ?
गब्बर: पटाखे और इनाम छोड़ पहले पुताई करवा, जा उस फुलझड़ी बसंती को ले आ।
सांभा: सरकार कहां वो नाजुक बसंती बाई और कहां चूने की पुताई कुछ और सोचिए।
गब्बर: कमीने , आ गया आईडिया।
सांभा: क्या आईडिया सरकार।
गब्बर -पुताई करेगा तू और पूरी गैंग के कपड़े भी धोएगा। चल गुफा के कोने की सफाई से हो जा शुरू......
सांभा: नहीं सरकार मैं मर जाऊंगा, मुझे आपने हमेशा बंदूक चलाना सिखाया है और आज पुताई के लिए कूंची चलाने को कह रहे हो। मुझसे ये काम मत करवाओ।
गब्बर: तो तू पुताई नहीं करेगा..
गब्बर -सरकार रहम, मैने आपका इनाम खाया है नमक तो कालिया ने खाया है ?
गब्बर: साले अब समझ में आया सरदार की जगह तू सरकार-सरकार क्यूँ बोल रहा है , इनाम देने वाला कोई और ??? ओर इनाम वापस करने यहाँ आ गया , बहुत नइंसाफी है , रे !!!
ढिसक्यूँ , ढिसक्यूँ , ढिसक्यूँ ......
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