दीवाली की फुलझड़ी




गुरु और चेले की हंसमुखी  फुलझड़ी ….” 
गुरु : “बेटा… दीवाली …”
(बात अभी पूरी हुई भी नहीं और चेला एकदम भाग कर गया और फिर थोड़ी देर में लौट कर आया …)
चेला : “आस पड़ोस हो आया हूँ सबको बताके आया हूँ दीवाली है  ,,,सबको दीवाली की बधाई ”
गुरु : “बेटा , सुनो तो … दीवाली के ‘इस ’ पर्व पर …”
(इतना सुनते ही चेला फिर भाग गया ओर कुछ देर के बाद लौट आया …)
चेला : “बाज़ार होकर आया हूँ बहुत सी चीज़े लाया हूँ यह लो नमकीन और मिठाई , दीवाली की आप को बधाई ”
गुरु : “बेटा , मुझे यह सब नहीं चाहिए …मैं कह रहा था – “दीवाली के इस पर्व पर ‘एक दीप ”
(इतना सुनते ही चेला और एक बार भाग गया और फिर थोड़ी देर में लौट आया …)
चेला : “घर छान के आया हूँ पुराना दीप लाया हूँ अब इस से कुछ काम चला लो दीवाली को ऐसे ही मना लो ”
गुरु : “बेटा , मैं तो यह कह रहा था – “दीवाली के इस पर्व पर एक दीप तुम भी जलाओ ”
(चेला फिर भाग गया और थोड़े ही समय में फिर लौट आया …)
चेला : “दूकान से हो कर आया हूँ नया दीप लाया हूँ पैसे तो पूरे दिए सही फिर भी कम्बख्त जलता नहीं ”
गुरु : “बेटा , इस दीप को अब छोडो … गुरु रूपी दीप की बात कर रहा था …”
(चेला फिर भाग गया और काफी समय के बाद लौट आया …)
चेला : “घूम घाम के आया हूँ गुरदीप को पकड़ के लाया हूँ ( अच्छा हुआ हरप्रीत नहीं बोला , वो तो ...????) इस से पूरी मरम्मत करा लो और दीवाली को शान से मना लो ”
गुरु : “बेटा . रुको और गौर से सुनो ….
दीवाली के इस पर्व पर एक दीप तुम भी जलाओ
प्रीत और मुस्कान का हर तरफ प्रकाश फैलाओ ”
चेला : “वाह ..गुरु जी  वाह , क्या बात सुनाई अब पूरी समझ में आई ! 
  दीप कई प्रकार के होते हैं…घर मे होते है, दुकान मे होते हैं , नाम मे होते हैं, गीतों मे होते हैं
और बातों मे भी होते हैं… 
लेकिन एक खास होता है- प्रीत और सत्कार वाला दीप ! 

हा हा हा , लगता है पक गए आप ,. लेकिन शुक्र है  कि पक कर टपके नहीं ?  शुभ दीपावली  !



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