टोपी की वापसी
( इस हास्य का अवार्ड वापसी वाले लोगों से कोई लेना देना नहीं है ! नरेंद्र हँसमुखी ...
जंगल में अबकी बार ऐसा शेर आया कि उससे अड़ोस पड़ोस के दूसरे शेर भी काम्पने लगे ..
जंगल में कुछ सियार भी थे जो पुराने शेरों के पालतू थे , अब उन्हें कोई नहीं पूछता था !
सियार सोचने लगे अगर शेर ऐसे ही जलवे दिखाता रहा तो हमारा नामों निशान मिट जायेगा ?
सियारों ने अपने पालतू बंदरों को बुलाया और याद दिलाई उन हँसमुखी दिनों की जब उन्हें टोपियाँ पहनाई थी ?
बन्दर बोले :- हम अपनी टोपियां वापस दे देंगे , जंगल में मंगल नहीं होने देंगे , आग लगा देंगे ? शेर का शिकार करवा देंगे !
इधर बन्दर बन्दूक लेकर , शेर का छुपकर शिकार करने की तलाश में घूम रहे थे , पर शेर आखिर शेर था , वो एक तरफ की झाड़ियाँ हिला कर दूसरी तरफ चला जाता। जब बन्दर उन झाड़ियों में गोली चलाने वाला रहता तो शेर , पीछे से आकर उसके गाल पर चमाट मार कर चला जाता ।
शिकारी बन्दर बहुत गुस्से में आ गये । उन्होंने फैसला किया कि कल वो सब के साथ मिलकर जंगल में आग लगा देंगे ।
उसने सभी बंदरों के साथ मिलकर ,दूसरे दिन जंगल में आग लगा दी और अपनी - अपनी टोपी पहन कर चिल्लाने लगे , "टोपी ले लो - टोपी वापस ले लो ।"
यह सुनकर शेर पीछे से आया और बन्दर की पीठ पर ज़ोर से लात मारी और बोला, " साबित हो गया है कि बेवकूफ थे और बेवकूफ ही रहोगे , यहाँ जंगल में आग लगी हुई है और तुम लोगों को टोपी वापस करने की पड़ी है।"
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