गब्बर की दीवाली
हास्य को हास्य में ही लीजिये :- गब्बर की दीवाली ?
“अरे ओ सांभा, दीवाली कब है रे ? कब है दीवाली ?” जेल से छूटकर लौटे गब्बर ने बौखला कर सांभा से पूछा।
“सरदार, दीवाली आज है । लेकिन, अचानक दीवाली का ख्याल कैसे आया। पहले तो होली कब है पूछते थे ? बसंती तो गाँव छोड़कर जा चुकी है ?
“धत् तेरे की। लेकिन, वीरु-जय उनका क्या हुआ?”
“सरदार, तंबाकू चबाते चबाते तुम्हारी याददाश्त भी चली गई है। जय को तुमने ही ठिकाने लगा दिया था, और वीरु बसंती को लेकर मुंबई चला गया था।”
“जे बात...। जेल में बहुत साल गुजारने के बाद फ्लैशबैक में जाने में दिक्कत हो रही है। खैर, ये बताओ बाकी सब कहाँ हैं।”
“कौन बाकी ? तुम और हम बचे हैं। जैसे ही , कालिया को तुमने टपकाया था, उसके बाद सारे साथी भाग लिए थे।
“तो रामगढ़ में हमारी कोई औकात नहीं अब ? कोई डरता नहीं हमसे ? एक ज़माना था कि यहाँ से पचास पचास मील दूर कोई बच्चा रोता था तो माँ कहती थी कि.....”
“अरे, कित्ती बार मारोगे ये डायलॉग। इन दिनों बच्चे रोते नहीं। माँ-बाप रोते हैं। बच्चे हर दूसरे दिन मैक्डोनाल्ड जाने की जिद करते हैं। मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने की माँग करते हैं। एक बार बच्चों को घुमाने गए माँ-बाप शाम तक दो-तीन हजार का फटका खाकर लौटते हैं....।“
“सांभा,छोड़ो बच्चों को। बसंती की बहुत याद आ रही है। बसंती नहीं है तो धन्नो के पास ही ले चलो।”
“अरे सरदार...कौन जमाने में जी रहे हो तुम। धन्नो , बसंती की याद में निकल गई थी। और धन्नो की बेटी बन्नो धन्नों की याद में टहल ली। अब, धन्नो नहीं सेंट्रो, स्विफ्ट, नैनो, एसएक्स-4,सफारी वगैरह से सड़कें पटी पड़ी हैं”
“अरे, ये कौन से हथियार हैं?”
“ये हथियार नहीं। मोटर कार हैं। तुम्हारे जमाने में तो एम्बेसेडर भी बमुश्किल दिखती थी। अब नये नये ब्रांड की कारें आ गई हैं।”
“सांभा आओ फिर कार खरीदकर लाते हैं।“
“अरे तुम्हारी औकात नहीं है कार खरीदने की।”
“जुबान संभाल सांभा। पता नहीं है सरकार कित्ते का इनाम रखे है हम पर।”
कोई इनाम नहीं है तुम पर अब। और जो था न पचास हजार का ! उसमें गाड़ी का एक पहिया नहीं आए। सबसे छोटी गाड़ी भी तीन-चार लाख की है। तुम तो साइकिल देख लो-यही गनीमत है।”
“सांभा, भूख लग गई है यार । दीवाली पर गुझिया वगैरह तो अब भी बनाते होंगे ये लोग?”
“गब्बर बुढ़िया गए हो तुम। आज के बच्चों को गुझिया का नाम भी पता नहीं। बीकानेरवाला, हल्दीरामवाला, गुप्तावाला वगैरह वगैरह मिठाईवाले धाँसू डिब्बों में मिठाई बेचते हैं। बस, वो ही खरीदी जाती हैं। एक-एक डिब्बा सात-सौ-आठ-सौ का आता है। तुमाई औकात मिठाई खाने की भी नहीं है।”
एक काम करो तुम बिहार निकल जाओ , वहां पर लोग तुम जैसों को ढेरों मिठाई बाँट रहे हैं !
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