शायरी का कबाड़ा


मैंने उनसे कहा कि  तुम्हारा दुप्पटा उठा लो जमीन से घिसटता जा रहा है !

वो शायराना अंदाज़ में  बोली :- दुप्पटा भी अपना फ़र्ज़ निभा रहा है , कोई चूम न ले मरे  कदमों  की मिटटी को इसलिए ये निशान मिटा रहा है !!..

मैंने कहा - पगली , शायरी बाद में करना , ठीक  से देख ,  आगे नाली का ढक्कन खुला पड़ा है !!! 

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