पान पत्र

 ( एक परम मित्र की फरमाइश पर " आप " भी पकिये )
जब नौकरी को दर दर भटक रहे थे , भाई , हमने पान की दुकान लगाई थी  जब ,  पत्नी जी मायके गई थी , तब का प्रेमपत्र ( पुनः प्रकाशित )
पनवाड़ी हँसमुखी का प्रेम पत्र
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हमरी पियारी राम दुलारी,
सदा मुस्कियात रहो,बिलकुल मीठे पत्ते की मिठास कि तरह !
जब से तुम रिसियाय के अपने खुज्जू  भईया के इहाँ गयी हो, तब से हमरी जिंदगी है, अइसी हो गयी है, जइसे बिना सुपारी का पान ! सच कहत है राम दुलारी, तुमरे लाल-लाल होठन की कलकतिया मुस्कान देखे बिना हमार मन सुरती खाने को भी नहीं करत है !
कसम बनारसी पान की, तुमरे संग हमार मन अइसे घुल मिल गया है, जइसे चुन्ना कत्थे के साथ मिल जात है, हम मानत है की हम तुमको सनीमा देखाने नाहीं लई गए, पर हम का करे, दिन भर पान की दुकान पर बइठ के चुन्ना लगाए-लगाए के हमरी मती भी सुन्न हो गयी थी , अब हम तुमसे हाथ-गोड जोड़ के चिरुरी करत है कि तुम गुस्सा पीक दो औउर फौउरन लोउट आओ, नही तो हम तुमरी याद में मघई पान की तरह घुलते-घुलते खत्म हुई जायेंगे ? और तुम्हे बहुत याद आएंगे ! अरे तुम तो हमरे लिए केसर, इलाइची से भी जादा खुशबूदार और गुलकंद से भी ज्यादा मीठी हो ! भला हम तुमसे दूर कइसे रह सकत है , हम दिल है और तुम जान हो, हम जर्दा है और तुम पान हो, बस अब अपने गुटखे की खातिर आ जाओ तुम्हरे लिए हम जिगर खोल के बैठे हैं , बीड़ी जलाई लो जिगर से , जिगर में बड़ी आग है !!
सिर्फ तुम्हरा ही तुम्हरा
हँसमुख लाल पनवाड़ी ! 

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