गधा , घोडा या गिरगिट ?

नरेंद्र दुबे हंसमुखी


दिल्ली  में दूर गाँव से आया एक नौजवान  नौकरी की तलाश में दिन भर भटकता 

रहता है । रात में सोने की जगह नहीं होने के कारण वो गाँधीजी की एक

प्रतिमा के नीचे लेट जाता है।

रात के दो बजे उसे कोई जगा देता है । ऑंखे खोलकर नौजवान देखता है कि

उसके सामने गाँधीजी स्वयं खड़े हैं । वो पूछता है,'क्या बात है बापूजी ?

बापूजी बोले, 'बेटा, तुमने तो देखा होगा कि जहाँ कहीं भी मेरी प्रतिमा बनी है

वहाँ मुझे खड़ा हुआ या चलता हुआ बताया जाता है । इतने सालों से खड़े-

खड़े मैं थक गया हूँ। तुम्हारी मेहरबानी होगी यदि तुम मेरे लिए एक घोडे का

इन्तजाम कर दो। नौजवान ने बापूजी को उनकी इस हालत से " आज़ादी " का आश्वासन दिया कि वो दूसरे ही दिन घोडे का इन्तजाम कर देगा।
दूसरी रात नौजवान अपने साथ एक कजरी टाइप के नेता को बहला-फुसलाकर लाता है कि वो
बापूजी के लिए कोई अच्छे घोडे का इन्तजाम कर दे । 
ठीक रात को दो बजे  नौजवान शान से बोलता है, ''बापूजी, अब आपकी समस्या का हल शीघ्र ही हो जाएगा । देखो, मैं यहाँ पर सदी के सबसे बडे नेता को लेकर आया हूँ !  
गाँधीजी नौजवान को कसकर फटकारते हुए बोले, 'अरे मूर्ख, मैने तुझे घोडा लाने के लिए कहा था, गिरगिट  को क्यों ले आया है ? 


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