मोबाइल युग कैसे क्यूँ आया ? mobile era starts

हास्य को हास्य में लीजिये , मोबाइल युग !

हास्य को सच भी समझ लिया तो कोई  फर्क नहीं पड़ेगा ?

बचपन में मम्मीजी  ने बताया था कि त्रेतायुग , द्वापरयुग  , सत युग और कलयुग आएगा  किन्तु यह नहीं  बताया कि  एक युग और आएगा ? जिसका नाम होगा " मोबाइल युग " ? आइये देखते हैं क्या फर्क है पहले और आज में ?
पहले सुबह उठते ही बड़ों का आशीर्वाद लेते थे , सूर्य दर्शन करते थे , अब सबसे पहले मोबाइल दर्शन करते हैं , ठीक उसी प्रकार जैसे बच्चा उठते ही अपना खिलौना ढूंढ़ता है ! और जिस प्रकार मां उठते ही बच्चे की चड्डी चेक करती है , ठीक उसी प्रकार हम भी चेक करते हैं कल जो जो पोस्ट किया था उसका क्या रिजल्ट आया  ? जैसे ही हमारा नेट चालू होता है , नोटिफिकेशन की गड़गड़ाहट , ठीक उसी प्रकार बजना शुरू होती है जैसे  गैस पास हो रही हो और जैसे ही  मोबाइल का पेट साफ़ होता है हमें लगने लगता है कि अब इसे गुड मॉर्निंग की पोस्ट का नाश्ता चाहिए !
 अगर बीवी को पति को किसी काम से सुबह जल्दी उठाना है तो पहले चादर खींचने की प्रथा या मुंह पर पानी मारने की प्रथा थी , लेकिन अब वो पति का मोबाइल उठकर नोटिफिकेशन चेक करने लगती है , पति चाहे कितनी भी गहरी नींद में हो , इस समय जागकर पूछता है " अरे ! ये क्या कर रही हो ? मुझे तो चेक कर लेने दो , किसने क्या कमेंट्स किया है ??
पत्नी " वही तो पढ़ रही हूँ कमेंट्स आया है ," भैया , कभी, भाभी जी की के काम में भी हाथ बंटा दिया  करो "  अरे ! इन्हें कैसे पता चला कि बाथरूम के अंदर छिपकिली है , जाइये उसको भगा आइए  ?
पति बाथरूम में जाकर छिपकिली ढूंढता है   , लेकिन छिपकिली नहीं दिख रही !
पति ( जोर से ) :- अरे ! कहाँ है , मुझे नहीं दिख रही ?
पत्नी  :- अभी फेसबुक का ग्रुप ढूंढने का कह दो तो बिना चश्मे के मिल जायेगा  और एक छोटी सी छिपकली नहीं मिल रही, जनाब को , काहे के एडमिन बने हो इतने ग्रुपों के , चलो  आ जाओ वापस  , छिपकली तुम्हें देखकर  खुद ही निकल आई है ! 
पति  :- अच्छा , मुझको बना रही हो , छिपकिली वहां थी ही नहीं ? 
पत्नी :-  ऐसे कैसे नहीं थी , थी और वहीँ पर थी ! छिपकली तुम्हारे जैसी आलसी नहीं है कि एक ही जगह पर पड़ी रहे !

नोट :- इस कहानी को यही ख़तम करने में ही भलाई है , क्यूंकि  छिपकली की बेइज्जती अब सहन नहीं हो रही !

हँसते रहिये ,  हंसाते रहिये ! 



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