मेरी हास्य वसीयत !
कृपया इस हास्य वसीयत को हास्य में लीजिये !
प्रिय मित्रों , मेरी हास्य वसीयत बहुत पहले ही बनाई गयी है और मेरे नए मित्रों को अवगत करा रहा हूँ :-पुनः प्रकाशित :- मरणोपरांत :- मैं नरेन्द्र कुमार दुबे , पद :- वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी, (अकाउन्ट्स ) मध्य - रेल !योग्यता :- M . Sc . (Maths ) , डिप्लोमा इन कंप्यूटर साइंस , पीएचडी ( हास्य - विज्ञान ) { पत्राचार , मित्रों द्वारा }.....अपनी वसीयत अपने पूरे होश में कर रहा हूँ कि :- मैं , जब अपने पद , योग्यता , एवं प्राण को शरीर से त्याग दूँ .... तब ?मेरा पूरा परिवार मातम बिलकुल न मनाये , मैं आप सभी को रोता बिलखता छोड़ कर नहीं जा रहा हूँ बल्कि हँसते मुस्कुराते जा रहा हूँ !! हा.हा.हा. , मेरे मित्रगणों को जैसे ही यह खबर लगे ,वे प्रसन्नता रखते हुए मेरे घर आयें और जो चार मित्र मुझे कन्धा लगायें , वे आपस में मेरे हास्य व्यंग के चुटकुले एक दूसरे को सुनाते चलें , ताकि मेरे भारी भरकम शरीर का बोझ उन्हें हल्का लगे , बाकी सभी मित्र , रिश्तेदार ..राम नाम सत्य है की बजाय हो हो - हा हा बोलें , ताकि मेरी आत्मा को शांति मिल सके , मुझे स्वर्ग में बिलकुल नहीं जाना है , क्यूंकि स्वर्ग का सुख तो यहीं भोग के जा रहा हूँ , आप जैसे भगवान तुल्य मित्रों के साथ रोज हँसते हंसाते हुए ! मुझे नरक में ही जाना है , जहाँ दुःख ही दुःख होगा और मुझे लोग भी ज्यादा मिलेंगे , उन्हें हँसते-हँसते दुःखों को कैसे मिटाया जाता है , यह बताना है , मेरे गूगल , याहू , फेसबुक , ट्विटर , व्हाट्सएप के मित्रगण अपने स्टेटस पर मेरा एक व्यंग या चुटकुला जो आपको बेहद पसंद हो , वो जरूर पोस्ट करें , बस , यही मेरे प्रति आपकी सच्ची प्रेमांजली होगी ! आप सभी , अपने जीवन में तनाव रूपी " दानव " को हमेशा , हास्य रूपी व्यंग बाणों से मारते रहें ..यही मेरी अंतिम इच्छा है .हा.हा.हा.हा.हा.हँसते रहें हँसाते रहें !
अंत में :- कई मित्र इसे पढ़कर इतने द्रवित हो जाते हैं कि आंसुओं की बाढ़ आ जाती है ! कृपया इसे भी हास्य में ही लीजिये !
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